ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का निधन हो गया है। वह पिछले कुछ वक्त से बीमार थीं। 96 साल की एलिजाबेथ द्वितीय को उनके स्कॉटलैंड में बोल्मोरल कैसल स्थिति आवास पर डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया था, जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांसे लीं। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन पर दुनिया के अधिकांश लोगों ने दुख व्यक्त किया है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वास्तव में खुशियां मना रहे हैं।
भारत सहित कई देशों में मनाया गया जश्न
भारत, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और नाइजीरिया जैसे देश जो पूर्व में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियंत्रित थे, वहां कुछ लोगों ने क्वीन की मौत पर जश्न मनाया। इन देशों में कई लोगों ने अपने देशों की अधीनता में राजशाही की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है। हालांकि एलिजाबेथ द्वितीय ने जब रानी का ताज पहना तब ब्रिटिश साम्राज्य बेहद कमजोर हो चुका था। लेकिन फिर भी उन्होंने नव गठित राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के लिए बहुत अधिक परिवर्तन की अवधि के दौरान शासन किया।
स्वतंत्रता आंदोलनों को कुचलने की कोशिश
महारानी के निधन पर खुशियां मनाने वालों का तर्क है कि क्वीन, उपनिवेशनाद की सक्रिय भागीदार थीं। रानी एलिजाबेथ ने सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलनों को रोकने की कोशिश की और नए स्वतंत्र उपनिवेशों को राष्ट्रमंडल छोड़ने से रोकने की कोशिश की। लोगों का इल्जाम है कि एक रानी के रूप में वह पर्याप्त बुराई समेटे हुए थीं और ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेशों में अपनी क्रूरता के लिए प्रसिद्ध थीं। ब्रिटिश साम्राज्य जब अपनी शक्ति के चरम पर था तब ऐसा कहा जाता था कि इस साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होता है।
दुनिया के एक चौथाई हिस्से पर था ब्रिटेन का शासन
प्रथम विश्व युद्ध से ठीक पहले साल 1913 में ब्रिटेन दुनिया की आबादी का 23 प्रतिशत हिस्से पर शासन करता था। ऐसा कोई महाद्वीप नहीं बचा था जहां ब्रिटेन का नियंत्रण नहीं था। लेकिन अब महज 14 विदेशी क्षेत्र बचे हैं जहां ब्रिटिश संप्रभुता का नियंत्रण है। इन देशों में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे समृद्ध देशों के अलावा जमैका, बहामास, ग्रेनेडा, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन आइलैंड, तुवालू, सैंट लूसिया, सेंट विंसेट एंड ग्रेनेजियन्स, एंटीगुआ और बारबुडा, बेलिज, सेंट किट्स एंड नेविस जैसे देश शामिल हैं।


