प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना का उद्घाटन करेंगे। पीएम मोदी ने 8 मार्च 2019 को इस परियोजना की आधारशिला रखी थी। काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसके निर्माण और पुनर्निमाण को लेकर कई तरह की धारणाएं हैं। इतिहासकार बताते हैं कि विश्वनाथ मंदिर का निर्माण अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने कराया था। काशी विद्यापीठ में इतिहास विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर के मुताबिक, ‘विश्वनाथ मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने कराया, इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं और टोडरमल ने इस तरह के कई और निर्माण भी कराए हैं। हालांकि, यह काम उन्होंने अकबर के आदेश से कराया, यह बात ऐतिहासिक रूप से पुख्ता नहीं है। राजा टोडरमल की हैसियत अकबर के दरबार में ऐसी थी कि इस काम के लिए उन्हें अकबर के आदेश की जरूरत नहीं थी।’
महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था मंदिर का पुर्निमाण
जानकार बताते हैं कि करीब 100 साल बाद औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया था। आगे करीब 125 साल तक यहां कोई विश्वनाथ मंदिर नहीं था। मौजूदा विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोना दान दिया था। ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास भी आए थे।
5 लाख स्क्वायर फीट में नए अवतार में काशी विश्वनाथ धाम
अब 286 साल बाद इस मंदिर को नए अवतार में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। करीब सवा 5 लाख स्क्वायर फीट में बना काशी विश्वनाथ धाम बनकर पूरी तरह तैयार है। इस भव्य कॉरिडोर में छोटी-बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। कॉरिडोर को 3 भागों में बांटा गया है। इसमें 4 बड़े-बड़े गेट और प्रदक्षिणा पथ पर संगमरमर के 22 शिलालेख लगाए गए हैं। इनमें काशी की महिमा का वर्णन किया गया है।


