शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों (Three Farm Laws) की वापसी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के फैसले के बाद भाजपा (BJP) के साथ फिर से गठबंधन की संभावनाओं को सिरे से नकार दिया है. समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा भाजपा के साथ गठबंधन से जुड़े सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘नहीं.’
‘जो हमने बात कही थी, वो सच हुई’
इसके साथ ही बादल ने आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, “किसान आंदोलन के दौरान 700 जानें चली गई हैं, शहादतें हो गई हैं. यही बात हमने पार्लियामेंट में कही थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से. कि जो आपने काले कानून बनाए हैं, ये देश के किसान नहीं मानते, आप कानून लेकर ना आएं. जो हमने बात कही थी, वो सच हुई.”
पीएम मोदी ने की कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पिछले करीब एक वर्ष से अधिक समय से विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा की और इसके लिए संसद के आगामी सत्र में विधेयक लाया जाएगा. प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े मुद्दों पर एक समिति बनाने की भी घोषणा की
#WATCH | Punjab: Shiromani Akali Dal chief Sukhbir Singh Badal denies possibilities of allying with BJP after the repeal of three #FarmLaws pic.twitter.com/qclGIEyNq9
— ANI (@ANI) November 19, 2021
तीन कृषि कानूनों पर किसान कर रहे हैं आंदोलन
तीनों कृषि कानूनों के विरोध में अलग-अलग राज्यों मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश से आए किसान पिछले साल से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं. उनका कहना है कि इससे फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद बंद हो जाएगी. किसान संगठनों और सरकार के बीच विवाद के बाद उच्चतम न्यायालय ने 11 जनवरी 2021 को इन तीनों कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया था
क्या है विवाद
तीन कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसानों का (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को संसद ने पिछले साल सितंबर में पारित किया था. किसान समूहों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसान बड़े कॉरपोरेट के मोहताज हो जाएंगे. हालांकि, सरकार ने इन आशंकाओं को निराधार बताया था.


