World wide City Live, नई दिल्ली (आँचल) : भारतीय रिजर्व बैंक ने एक नवंबर से देश में प्रायोगिक तौर पर केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की शुरुआत की है। फिलहाल नौ बैंकों को इसके सीमिति प्रयोग की अनुमति दी गई है। प्रयोग सफल रहा तो इसे वृहद स्तर पर लागू किए जाने पर विचार होगा। भारत ही नहीं, विश्व में सौ से अधिक देशों में इस समय सीबीडीसी पर कार्य हो रहा है। आइए समझें क्या है यह करेंसी, कैसे काम करती है और कौन देश इस नवाचार में कितना आगे बढ़ चुके हैं।
किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा इलेक्ट्रानिक मुद्रा को ही सीबीडीसी कहते हैं। भौतिक मुद्रा के स्थान पर इनका प्रयोग किया जाता है। इनका मूल्य भी भौतिक मुद्रा के समान ही रखा जाता है। इन्हें केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किया जाता है क्योंकि किसी देश में मुद्रा की आपूर्ति, उसकी निगरानी और मौद्रिक नीति बनाने का काम इसी बैंक की जिम्मेदारी होती है। कहा जा रहा है कि सीबीडीसी भौतिक मुद्रा का विकल्प नहीं होगी, बल्कि इसके पूरक के रूप में प्रयोग की जाएगी।
कितनी सुरक्षित है डिजिटल करेंसी
- बिटक्वाइन, एथर या एक्सआरपी सरीखी निजी डिजिटल करेंसी के मुकाबले इसे अधिक सुरक्षित माना जाता है क्योंकि सीबीडीसी देश द्वारा जारी की गई करेंसी होती है। अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने कहा है कि उसकी डिजिटल करेंसी लोगों के लिए सबसे सुरक्षित मुद्रा होगी। आमजन ही नहीं, उद्योग-व्यापार और वित्तीय संस्थान भी इसका प्रयोग कर सकेंगे।
- विश्व आर्थिक फोरम ने सीबीडीसी को लेकर जारी गाइडलाइन में स्पष्ट किया है कि लोग अब नकदी के बजाय डिजिटल भुगतान अधिक करते हैं। ऐसे में सीबीडीसी लागू हो तो वह इसे बैंक के अकाउंट या फिर इलेक्ट्रानिक टोकन के रूप में रख सकेंगे। ये इलेक्ट्रानिक टोकन मोबाइल फोन, प्रीपेड कार्ड और डिजिटल वालेट के अन्य प्रारूपों में रखे जा सकते हैं
- यूरोपीय सेंट्रल बैंक का कहना है कि इससे लोगों को भुगतान में आसानी होगी। उन्हें अधिक विकल्प मिलेंगे। हालांकि विश्व आर्थिक फोरम का कहना है कि जाली करेंसी की तुलना में डिजिटल चोरी और नेटवर्क फेल होने की स्थिति में सीबीडीसी अधिक व्यापक समस्या बन सकती है
क्या होंगे डिजिटल करेंसी के लाभ
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि विश्व में 1.7 अरब वयस्कों के पास अभी बैंक अकाउंट नहीं है। इससे गरीबी उन्मूलन व उन्हें वित्तीय ढांचे में शामिल करने में परेशानी होती है। सीबीडीसी से इसमें सहायता मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि किसी प्राकृतिक आपदा, भुगतान की विफलता और नकदी की कमी की स्थिति में सीबीडीसी एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है।
आर्थिक अपराधों पर लगाम कसी जा सकेगी। नकदी की निगरानी कर पाना आसान नहीं है और इससे अपराधियों को मदद मिलती है। सीबीडीसी लेनदेन में पारदर्शिता को बढ़ावा देगी।
बहामास ने मारी बाजी, चीन की तैयारी
- अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट कहती है कि विश्व में सौ से अधिक देशों में सीबीडीसी पर कार्य चल रहा है। दस देशों ने सीबीडीसी लांच कर दी है। इसमें अफ्रीकी देश नाइजीरिया और कैरेबिबयाई देश जमैका भी शामिल हैं। वेस्टइंडीज का बहामास विश्व का पहला देश है जिसने सीबीडीसी लांच की है। अक्टूबर 2020 में लांच की गई इसकी डिजिटल करेंसी को सैंड डालर कहा जाता है। वहां के लोगों को इससे भुगतान में काफी आसानी हुई है। जमैका को नकदी के संग्रहण और संचालन में प्रतिवर्ष होने वाले सत्तर लाख डालर की बचत का अनुमान है
- जापान, रूस और दक्षिण कोरिया इसे लांच करने पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका और यूनाईटेड किगं डम में भी इस पर शोध व मंथन चल रहा है


