World wide City Live, नई दिल्ली (आँचल) : आगामी छह से 18 नवंबर के बीच मिस्र के शर्म अल-शेख में 27वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन आयोजित होना है। इसका उद्देश्य जलवायु आपदा की ओर ध्यान आकृष्ट करना और जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में प्रयासों को बढ़ावा देना है। इस अवसर पर बढ़ते वैश्विक तापमान, बेमौसम बाढ़ एवं सूखा, पानी की कमी, पैदावार में गिरावट, खाद्य असुरक्षा और जैव वैविधता का ह्रास, प्रदूषण और बढ़ती गरीबी तथा विस्थापन से जूझती दुनिया एकजुट होकर मानवता की रक्षा के निमित्त धरती की सुरक्षा के लिए एकजुटता दिखाएगी।
जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के मद्देनजर दुनिया को एक मंच पर लाने की दिशा में ऐसे प्रयास महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट होने और साझा प्रयासों में ही जलवायु परिवर्तन का समाधान निहित है। 2021 में ग्लासगो में आयोजित काप-26 सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा 2050 तक कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने को लेकर सहमति बनी थी, जबकि 2015 के पेरिस जलवायु सम्मेलन को ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के गठन और पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता के लिए याद किया जाता है।
जलवायु परिवर्तन इस सदी की प्रमुख समस्या है। यह संकट मानवता के अस्तित्व के लिए चुनौती बनता जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन के एजेंडे में जलवायु तबाही के कारण आर्थिक नुकसान के मुआवजे को भी शामिल किया गया है। इस साल दुनिया के कई देशों को प्रतिकूल मौसमी परिघटनाओं की मार झेलनी पड़ी। पाकिस्तान में बाढ़ से 3.3 करोड़ आबादी प्रभावित हुई। डेढ़ हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई। 44 लाख एकड़ भूमि पर लगी फसल चौपट हो गई। यूरोप के कई देशों में गर्मी के पुराने रिकार्ड टूट गए। गर्मी के कारण वहां जंगलों में लगने वाली आग ने जैव विविधता को जो क्षति पहुंचाई, उसकी भरपाई शायद ही हो पाएगी। भारत में भी मानसून की देरी के कारण पहले तो समय पर रोपाई नहीं हो सकी और बाद में इतनी बारिश हुई कि कई हिस्सों में फसलें चौपट हो गईं।


